prembrij.

हे देश मेरी पहचान है तू

हे देश मेरा अभिमान है तू
हे देश मेरी पहचान है तू ,

हे देश मेरी ही शान है तू
हे देश मेरी ही जान है तू।
है देश तो हम भारतवासी
है देश नहीं तो बनवासी ,
है देश तो मां और बहना है
है देश तो हम सब गहना है।


इस देश के खातिर बलिदानी
जो जीते हैं मरते मन से,
हम सेनानी उन वीरों के
जीते हैं हमसब अब तन के।


हम श्री राम के वंशज हैं।
राणा प्रताप के अंशज हैं


राणा सांगा आदर्श मेरा
है वीर शिवा मेरी धाती।
नतमस्तक होता शीश मेरा
चौड़ी होती मेरी छाती

इन मुगलों की संतानों से
राणा सांगा है घिरा हुआ
अब खुदगर्जी के खातिर भी
अपना दुश्मन से मिला हुआ


अब जयचंदों की टोली को,
एक ऐसा सबक सिखाना है।
आने वाली दस पुश्तों को
जड़ से अब इन्हें मिटाना है

मिट्टी में मिला दो उन सबको
जो देश धर्म के दुश्मन है,
हम सभी हैं भारत के वासी
है नहीं किसी से अनबन है।


अब जाति धर्म में बंटे बिना ,
मिल करके इन्हें मिटाना है।
इस धर्म ध्वजा को अब हमको
गिरने से पूर्व उठाना है।

हिंदू नव वर्ष में इस गीत की रचना हुई एवं कवि गोष्ठी में सुनाया गया।