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सीनियर सिटीजन (एक व्यंग्य कविता)

सरकारी नौकरी थी उस पर अफसरी थी.
मलाईदार विभाग था टेंशन फ्री दिमाग था.
जब मर्जी आते थे जब मर्जी जाते थे.
हर दिन होली और दीवाली मनाते थे.
ऑफिस के कॉमन रूम का अपना ही चार्म था.
क्योंकि दोपहर के खाने में जुटता स्टाफ था.
मेरी पीए माला, सीए मधुबाला, पी आर ओ छाया,
के साथ खाने का अपना ही स्वाद था.
महिलाओं का स्टाफ था माहौल लाजवाब था.
ग़ज़ल और गानों का भी बनता, प्रोग्राम था.

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एक दिन रिटायरमेंट का नोटिस भी आ गया.
इस बुरी खबर से मैं भी सदमे में आ गया.
खूब तालियां बजाई और सब ने दे दी बधाई.

बोली माला परसों से आप सीनियर सिटीजन हो जाएंगे.
सच में कहे सर, आप बहुत याद आएंगे.

जिस दिन विदाई हुई सब ने गुणगान किया.
फूलों सजी गाड़ी में मुझको घर भेज दिया.
पड़े पड़े घर में दिल मेरा घबराता था.
सच में कहूं यारों मुझे कुछ भी ना भाता था.
सोचता रहा कि अब मैं सीनियर सिटीजन हो जाऊंगा.
और जवान लड़कियों का अंकल कहलाऊगा.

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सुबह की चाय रोज बालकनी में ही पीता था.
वहीं से नई पडोसन,का दीदार होता था.
आते जाते पत्नी में शायद कुछ भांप लिया.
बालकनी में आते ही मुझको था डांट दिया.
शर्म नहीं आती सीनियर सिटीजन हो गए हो.
बड़े-बड़े बच्चों के बाप हो गए हो.
कल से ही तुम अपना कुछ रूटीन बनाओ.
नीचे जाओ पार्क के चक्कर लगाओ.
आते समय साग और सब्जी भी लाओ.
, घर में नाती पोते हैं उनको भी खिलाओ.
सोचो गर बुढ़ापे में नाक कट जाएगी.
दुनिया की कोई सर्जरी भी ना जोड़ पाएगी.

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अगले दिन जैसे ही हम रूटीन मे आये.
पचासी पार वाले पांडे जी टकराए.
मेरे पास आते ही थोड़ा मुस्काए.
क्या हुआ आज क्या बीवी ने भगाया है.
इसीलिए भाई आज पार्क याद आया है.

कारण जान पांडे जी बोले रोज पार्क आया करो.
और हम सब के साथ पार्क में भजन गाया करो.
, अब तो तुम साठा से पाठा हो जाओगे.
और इस समाज में खूब इज्जत कमाओगे.

अरे भाई साठ के पार का आदमी जब समझदार होजाता है.
तभी तो वह साठा से पाठा कहलाता है.

मैं चिढकर बोला नहीं पांडे जी साठ से पचहतर
तक तो जूनियर सिटीजन होता है.
75 से ऊपर जाने तक सीनियर सिटीजन होता है.

पार्क र्में घुसते ही परम मित्र रमेश जी मिल गए.
बोले गुरु क्या तुम भी फ्री हो गए.
यहां पार्क में तो यार बड़ी नेगेटिविटी होती है.
चारों देखो कैसी क्रिएटिविटी होती है.
जिंदगी को लंबा करने की जद्दोजहद में
मे हर आदमी मशगूल है.
जवान तो जवान बूढा भी मशगूल है.
, वह देखो जो उल्टा है उसे शीर्षासन कहते हैं.
और सीधे वाले को सूर्य आसन कहते हैं.
दोनों हाथों से ऊपर हवा में जो उड़ा हुआ है.
सब लोग उसे मयूरासन कहते हैं.
कोने में जो आदमी मरा सा पड़ा हुआ है.
घबराइये मत उसे शवासन कहते हैं.
भांति भांति के लोग कपालभाति करते हैं.
जिन का अनुलोम ठीक नहीं वह भी विलोम करते हैं.
लेकिन आते जाते कुछ अच्छी चीजें भी नजर आती हैं.
सच में कहूं यार यही दिल को ठंडक पहुंचाती हैं.

दिल छोटा मत करो यार वरना डिप्रेशन में आ जाओगे.
और समय से पहले ही बुड्ढे हो जाओगे.

उधर सामने वाले ट्रेक मे,
शिल्पा शेट्टी का योग आसन कैंप है.
वही मन लगाओ वरना बीमार हो जाओगे.
अंदर से जवानों वाली फीलिंग भी लाओ
यंकी सा ट्रैकसूट में ही नजर आओ.

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जिंदगी पंख लगा के उड़ गई पता ही नहीं चला.
मैं जूनियर सिटीजन से सीनियर सिटीजन
कब बन गया पता ही नहीं चला.
मैं साठा से पाठा कब बन गया
पता ही नहीं चला.

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अब तो माला भी जब घर सपरिवार आती है.
सह सम्मान मुझको भी आदर दिखाती है.
आते जाते मेट्रो में अब मुझे मधुबाला भी मिल जाती है.
और ना ना करते करते भी घर को छोड़ जाती है.
शादी के बाद एक बार छाया भी घर आई थी.
और मेरे पैरों में हाथ लगाते ही
चश्मे के अंदर से मेरी आंखें भर आई थी.


अब तो हर रोज नाती पोतों की याद आती है.
अब तो बहू भी पापा पापा कहते नहीं अघाती है.
सच कहूं तो यार मुझे यह जिंदगी भी भाती है
शाम के बाद क्लब में यारों का इंतजार होता है.
यही वह समय है जब जिंदगी भी थम जाती है.
कुछ भी कहो यार बस यही जिंदगी ही भाती है.

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जवानी बंद मुट्ठी में दबी रेत की तरह होती है.
कसके पकड़ो कितना फिर भी खाली हो जाती है.

कुछ भी कहो यार अब यह जिंदगी ही भाती हैं.